पंचगव्य चिकित्सा क्यों ?
शरीर जिन पांच महाभुतों ( कंपाउंड एलिमेंट ) सै बना हे वे सभी गोमाता के गव्यों में उपलब्ध हैं । अन्यत्र नहीं । जैसै –
- शरीर में भूमि तत्व है – जो कि गोमय के पास है । – गोबर
- शरीर में जल तत्व है – जो कि क्षीर के पास है । – दूध
- शरीर में वायु तत्व है – जो कि गोमूत्र के पास है । – वायु का तरल रूप
- शरीर में अग्नि तत्व है – जो कि घृत के पास है । – घी
- शरीर में आकाश तत्व है – जो कि छाछ के पास है । – मोर, तक्र, मझिगा, मठ्ठ्ठा आदि
इसके अलावा शरीर में तीन प्रकार की उजाँये होती है जिसकी समझ केवल गप्यसिद्ध की शिक्षा में दी जाती है । आत्मा से सम्बन्धित विकारों की शिक्षा भी गप्यसिद्ध (पंचगव्य डोक्टरों) को दी जाती है ।
- अंग्रेजों द्रारा प्रतिबंधित नाड़ी और नाभि जांच की शिक्षा भी गप्यसिद्धों को दी जाती है ।
- १८ वीं सदी तक प्रचलित अंगों से रोगों की पहचान की शिक्षा भी गप्यसिद्धों को दी जाती है ।
कुल मिलाकर १५ वीं सदी के भारत ( नालंदा और तक्षशिला ) के कालखंड में स्थापित चिकित्सा विज्ञान आधारित आज के भूगोल, वातावरण एवं परिस्थितियों के गणित के अनुसार संशोधित चिकित्सा शास्त्र, जो कि सरल और कम से कम समय में अभ्यस्त होने लायक है । यही कारण है कि पंचगव्य चिकित्सा विज्ञान भारत के युवाओं के लिए भविष्य में स्वर्णिम अवसर प्रदान करने वाला है ।
यह सस्ता और दुष्परिणाम रहित हैं, स्थाई परिणाम वाला हैं । इससे चिकित्सा के बाद रोगों की
पुनरावृति नहीं होती । रोग जड से समाप्त हो जाते है । शरीर जैसा बायोटिक है उसी प्रकार पंचगव्य की ओषधियाँ भी पूरी तरह से बायोटिक हैं । अत: – औषधियाँ शरीर के साथ १००% समन्वय करते हुए निरोगी जीवन प्रदान करती है।
गाय का गोबर
गाय के गोबर में २३ % ऑक्सीसीजन की मात्रा होती है। गाय के गोबर से बनी भस्म में ४५% ऑक्सीजन की मात्रा मिलती है| गाय के गोबर में मिटटी तत्व है यदि आपको परिक्षण के लिए शुद्ध मिटटी चाहिए तो गाय के गोबर से शुद्ध मिटटी तत्व का उदहारण आपको कही नहीं मिलेगा | ऑक्सीजन भी भरपूर है यानि गोबर से ही वायु तत्व की पूर्ति हो रही है |
गाय का दूध
गाय के दूध में अग्नि तत्व है | तथा इस दूध के भीतर ८५% जल तत्व है |
गाय की दही
गाय की दही में 60 % जल तत्व है। गाय की छाछ गाय के दूध से ४०० गुना ज्यादा लाभकारी है | इसीलिए गाय की छाछ को अमृत कहा जाता है| इसमें इतने अधिक पोषक तत्व होते है की आप सोच भी नहीं सकते है | छाछ बनाने की अलग अलग विधियाँ है | छाछ को किस जलवायु में कितनी मात्रा में पानी मिलाकर बनाना है इसका अलग अलग तरीका है | तभी यह परा लाभ प्रदान करती है |
गाय का मक्खन
गाय के मक्खन में ४०% जल तत्व है | मक्खन अद्भुत है इसके अंदर भरपूर ब्रम्ह ऊर्जा होती है | ब्रम्ह ऊर्जा के बिना मानव के अंदर सत्वगुण नहीं आते है | बिना सत्वगुण के सवेंदनशीलता शुन्य हो जाती है | मान लीजिये किसी ने गुंडेगर्दी से आपके गाल पर थप्पड़ मार दिया तो आपके अंदर यदि सवेंदनशीलता नहीं है तो बर्दाश्त कर लेंगे अन्यथा आप उस थप्पड़ का जरूर जवाब देंगे |
गौ-मूत्र
गाय के मूत्र में विषय में आपने कई बार पढा होगा कि गौ-मूत्र के अन्दर अनेक जीवनपयोगी रासायनिक तत्व हैँ । गौ -मूत्र में भगवन धन्वतरि का निवास है, जो देवताओं के वैद्दय है। अकेले गौ-मूत्र के अन्दर ७० से भी अधिक बिमारियों को ख़त्म करने की शक्ति। गौ-मूत्र ही एक ऐसी ओंधधि है, जिससे वात-पित्त और कफ नियंत्रित होता है ।
पंचव्य पांच मुख्य वस्तुओं – दूध, दही, घी, गाय मूत्र और गोबर से बना है। इन पांच कॉस्मेटिक वस्तुओं में औषधीय गुण होते हैं और उनमें कई बीमारियों और त्रुटियों को हटाकर शरीर को स्वस्थ बनाने की क्षमता होती है। ये पांच आइटम अकेले या एक दूसरे के साथ या ऐसे अन्य जड़ी बूटी जड़ी बूटी और अन्य प्रभावी जड़ी बूटियों के बाद बने होते हैं। इस प्रकार के उपचार को पंचगव्य कहा जाता है। एलोपैथिक, होम्योपैथिक और आयुर्वेद पंचगव्य की तरह एक शरीर को स्वस्थ और रोगों को ठीक करने का एक तरीका भी है। पंचगव्य का प्रयोग वैदिक पुराण (चरका संहिता और गाद निग्राह) में किया जाता है। कई प्रकार की दवाएं बनाई गई हैं। आयुर्वेद में प्रयुक्त पंचगव्य और अन्य चीजों को पाचन, ऑस्टियोपोरोसिस, त्वचा रोग, मधुमेह, उभयचर, सफेद बुखार, गुर्दे से संबंधित बीमारियों, श्वसन रोग आदि जैसी कई बीमारियों से ठीक किया गया है।
2008 में, पंचगव्य चिकनगुनिया में एक दवा के रूप में प्रभावी साबित हुई है। गाय मूत्र का उपयोग सिर, शैम्पू, त्वचा क्रीम, आदि में किया जाता है और गाय की गाय का साबुन, नाक स्प्रे, बॉडी पाउडर, बॉडी क्रीम, दंतमजन आदि के रूप में उपयोग किया जाता है।